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Thursday, October 6, 2011

नया दर्द

शुरुआत एक नज़्म से कर रहा हूँ-

दर्द जब नया हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब जिस्म का हिस्सा हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब एक दास्ताँ हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब दर्द होकर कुछ और हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब खल्वत का इक सामाँ हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब दो दिलों की डोर हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब ज़िन्दगी से उठकर हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब रुसवाई से तबस्सुम में तब्दील हो जाए
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब करवटों का सहारा हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब किताबों में लिखी ग़ज़ल हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब तेरी याद दिलाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द शाम हो और सहर भी हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब सीने की धड़कन हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब सरापा हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब ख्वाबों को मिठास दे जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब पागल हो और दीवाना हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब हाथों की लकीरों में बस जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द इक क़तरा हो और समुन्दर हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब बेवजह मुस्कुराहटें ले आये
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब निकहत और इमरोज़ दे जाए
तो कुछ अहसास होता है

दर्द जब नए साल में अजनबी हो जाये
तो कुछ अहसास होता है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"