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Sunday, July 27, 2014

ख्वाबों की दुनिया

अनीसा आज सुबह-सुबह ख्वाबों की दुनिया में एक नया अहसास मिला. अनीसा मेरे लवों ने यूँ तो तुम्हारे लवों से अक्सर बातें की. मगर आज अनीसा तुम्हारे होठों ने मेरे होठों से बातें की . वो भी थोड़ी बहुत देर नहीं पूरे 1000 से. बातें की. सपना तो सपना है न , अनीसा न जाने कहाँ से अपने पास एक ऐसी घड़ी थी, उस वक़्त जो केवल सेकण्ड बता रही थी. अनीसा बातों का सिलसिला तुमने शुरू किया और तुम बीच में ही यानी बातों को अधूरा छोड़ना चाहती थी. (लवों की बातें ) मगर मेरे कहने पर तुमने पूरा साथ दिया. अनीसा लवों की बातें शुरू होने से पहले तुम्हारे गेसू बार-बार तुम्हारे आरिज ( गाल) और लवों ( होठों) पर आ रहे थे. तुम जब अपने उन गेसुओं को दूर कर रही थीं. हाय क्या खूबसूरती थी. मैं तो मर जाऊं . अनीसा आज तुम्हारे सादगी भरे लहजे में न जाने कहाँ से इंग्लिश वर्ड आ गया. तुमने जब अंदाज में कहा - लेट्स गो ! ( मैं नहीं जानता क्या हुआ इसका मायने ) और मुझे अपनी बाहों में भर लिया. 

मगर अनीसा ये एक ख्वाब था जो गुजर गया. मैं जहाँ था , वहीँ रहा. और तुम जहाँ थी वहीँ रही. 

मेरे सपने में आने का शुक्रिया - शाहिद की अनीसा 

22.09.01

5th Oct. 96

"5th Oct. 96" की हसीन रात को गुजरे 5 साल हो गए हैं.
यानी हमारे प्यार की 5 वीं सालगिरह पर
"मुबारकबाद" !

हाथों में मेरे नाम की चूड़ी , सर में मेरे नाम की मांग , वो प्यारा दिल जिसमें तुम्हारा शाहिद रहता है , उसे लाल चुनरी का साया , वो सूट जिसे पहनकर तुम मेरे रूम ( अपने घर ) पर आयीं थी. चोटी ऐसी , जिसमें बीच से मांग निकले ( मेरी पसंद की नहीं, जो मैं कहता था. अब बीच से मांग वाली चोटी , कोई क्रीम , कोई पाउडर , कोई काजल नहीं . उम्मीद है 5 अक्टूबर 01 की शाम से सुबह 6 अक्टूबर 01 तक तुम इस तरह रहने की जहमत उठाओगी .

अनीसा ये वही प्यार की दुनिया का दिन है जिसमें दीवानों की फेहरिस्त में एक नाम और जुड़ा था यानी अनीसा-शाहिद का .

इस दिन की अहमियत अपनी ज़िन्दगी में कभी कम न होगी.

अनीसा अल्लाह तआला से दुआ करो बार- बार आये ये दिन अपनी ज़िन्दगी में .

मैं रब से दुआ करता हूँ और तुम भी इसमें शामिल हो जाओ यानी तुम भी दुआ करो. तकयामत अपनी मुहब्बत सलामत रहे.
हम रहें न रहें !!
दुनिया शाहिद और अनीसा को दीवानों के नाम से याद करे !

तू मेरी चाह और मैं तेरी चाहत  !!!!!

- 18.09.01

Wednesday, July 23, 2014

16 अक्टूबर

अनीसा , आज फिर वही 16 अक्टूबर है, जिस दिन जैम ओं ने "नया दर्द" का सफ़र आग़ाज़ किया था.

मुबारक हो 16 अक्टूबर

- शाहिद
16.10.01

फूल टांक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में

मैं फूल टांक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में ---------- "अनीसा"

"अनीसा आज तुम्हारी आवाज़ में एक चहक थी"
- शाहिद
14.10.01

कोई तो लगन

अनीसा अपने प्यार में कोई तो कसक, कोई तो लगन , कोई तो जादू  है जो दिलों में बहैसियत मौजूद है .

अनीसा  जब तुम अभी 4 जुलाई 01 को मुझे फोन करने आई थी, लेकिन मेरे न मिलने की वजह से मेरी आवाज़ को सुनने में कामयाब न हुयीं.
अनीसा उस वक़्त मैं तहसील सर्टिफिकेट बनवाने गया था.

अनीसा मेरा यक़ीन करो , जब मैं वहां से लौटकर घर आ रहा था, रास्ते में मुझे पता नहीं क्यूँ ऐसा लग रहा था- कि जैसे आज तुम मुझे फोन करोगी और जैसे ही मैं घर आया, मालूम हुआ- तुम्हार फोन आया था. लेकिन शायद उस वक़्त बात करना अपनी किस्मत में नहीं था.

- शाहिद
4.07.01

एक ऐसा ख्वाब

अनीसा आज मैंने एक ऐसा ख्वाब देखा , जिसके पूरी न होने की , मैं ख़ुदा से भीख मांगता हूँ. क्योंकि गर ये पूरा हो गया तो हम दोनों की ज़िन्दगी में बहारें ख़त्म हो जाएँगी और हमेशा-हमेशा के लिए ग़म की घटायें छ जाएँगी . वो सपना ये था- 

तुम्हारी शादी किसी और के साथ होने जा रही है. मैं भी वहां मौजूद हूँ . तुम्हारे हाथों में मेंहदी लगी हुयी है . तुम मेरे पास रात में आयीं , मेरी गोद में सर रखकर रोटी रहीं. मुहब्बत की हार हुयी या जीत हुयी , मैं नहीं जानता , उस वक़्त जब मेरे ही बांहों के साए तुम्हें डोली में बिठाने ले गए .

- शाहिद
04.07.01

साहिल पर आ गया है

अनीसा 14 फरवरी 2000 को मैंने ( एक सच्चे प्रेमी ) जो वादा किया था. अब वो वादा ग़मों और दिक्कतों की सारी मौजों को पीछे छोड़कर साहिल पर आ गया है .
अनीसा तुमने कहा था-

"मेरा एक सपना है कि मैं आपको इंजीनियर में देखूं"

अनीसा आज मैंने वो वादा पूरा किया है अब उम्मीद करता हूँ कि तुम भी अपने वादे पूरे करोगी जो अपने प्यार के लिए तुमने मुझसे किए हैं.

- शाहिद
21.06.01.

तुमको नज़र

अपने Selection पर यही कहूँगा -

"दोनों की दुआओं का हुआ है असर
है मेरी मशक्कत मगर तुमको नज़र"

- शाहिद
21.0601

Tuesday, July 22, 2014

दुनिया बस "प्यार" से जाने .

अनीसा जैसा कि मैं चाहता था कि तुम भी शायरी करने लगो. तुमने अपना शायराना सफ़र शुरू किया. मैं बहुत खुश हूँ और मेरी हर ख़ुशी तुम्हें शुक्रिया कह रही है . अनीसा मैं चाहता हूँ कि हम दोनों को दुनिया बस "प्यार" से जाने .

- शाहिद
24.06.01

तुम्हारा नाम

मुझे मेरे Selection की मुबारकबाद देने वालों में सबसे ऊपर तुम्हारा नाम है. क्योंकि सबसे पहले तुम्हीं ने Wish किया था.

अनीसा तुम्हारी ख़ुशी को लफ्जों में बयां करना मुमकिन ही नहीं है. हाय ! क्या हंसी थी, क्या ख़ुशी थी . अनीसा फोन पर तुम्हारी साँसों के जरिये मैं तुम्हारे चेहरे के भावों को पढने में मशगूल था. अनीसा तुम्हारे चेहरे पर ख़ुशी को साफ़-साफ़ देखा जा सकता था. यूँ तो ख़ुशी मुझे भी है लेकिन उस वक़्त मुझसे कई गुना ज्यादा ख़ुशी तुम महसूस कर रही थीं.

अनीसा , जब तुमने मुझे पार्टी देने के लिए कहा तो मैंने , तुमसे अपने करीब आने को कहा . फिर तुमने कहा- चलो दूर से ही सही. अनीसा उस वक़्त मेरी साँसें ही थीं जो उस वक़्त वो सब कुछ दे सकती थीं जो तुम चाहती थीं. हम दोनों कितने खुश थे.

- शाहिद
21.06.01 

मालूम हुआ

अनीसा अभी कुछ ही दिन पहले मालूम हुआ कि मुहब्बत के मायने - अपने महबूब की हर बात मानना होता है

- 24.06.01

दो ज़िन्दगी

"शाहिद"
                             - दो ज़िन्दगी मगर एक जान

'अनीसा'

"अनीसा तुम मेरे इतने करीब आ जाओ कि तुम्हारी बाँहें मेरे गले का हार बन जाएँ और मेरी साँसें तुम्हारी साँसें हो जाएँ"
- शाहिद

"मेरी ज़िन्दगी तुम से है अनीसा "- शाहिद

03.06.01

वो दिन

"अनीसा न जाने वो दिन कब आएगा जब हम दोनों इन ख्वाबों को हकीकत के आईने में पायेंगे"
- शाहिद

27/05/01

- हमनवा

26th Mar. 01                                                       - हमनवा

Dear Beloved,
                       Hi
"अनीसा"
अनीसा आज उस खुशनसीब दिन ( जिस दिन का मुहर्रम का चाँद दिखाई दिया था ) को गुजरे पूरा एक साल हो गया  क्योंकि आज शाम को मुहर्रम का चाँद दिखाई देने वाला है. अब से कुछ घंटों बाद , अभी 2:28 pm है . अनीसा कितने हसीं थे वो प्यारे लम्हे. दुनिया की परवाह किए बगैर तुमने मेरे संग दरगाह के जीनों पर सजदा किया था. तुम्हारे इस कारनामे को शायद मेरे कलम से बाहर है जो कि हर एक हसीं लम्हात को अल्फाजों में पिरो देती है . अनीसा ऐसा मेरा यकीं है तुम्हें आज चाँद देखते ही , मेरे संग गुजारे वो लम्हे याद आने लगेंगे और तुम एक गुजरी हुयी दुनिया में फिर से चली जोगी. है न !

अनीसा कल इस मुहब्बत करने वाले ने सारी हदों को पार कर दिया. उस वक़्त तुम्हारा शाहिद मगरिब की नमाज़ पढ़ रहा था. और अनीसा तुम्हारी वो याद आई कि मैं नमाज़ में ही रो दिया. और फिर नमाज़ के बाद जब बारगाहे इलाही में मैंने अपने दोनों हाथ फैलाए तो मैं किस कदर रोया. ओ दीवानी मैं तुम्हें कैसे बताऊँ .

"मेरी रूह में बसी तुम वो रूह हो जो मेरे दिल को धड़का रही है"

अनीसा, मैं तुम्हें कैसे अहसास कराऊँ अपनी मुहब्बत का तुम्हीं बताओ.  अनीसा, मुझे कोई छत पर सोने का शौक तो नहीं है , तुमसे मिलने की लगन ही थी जिसने मुझे खुले आसमां के नीचे रहने को मजबूर किया. नींद आने का तो सवाल ही नहीं था . क्योंकि तुम मेरे करीब जो न थीं. अनीसा कितनी ख़ुशी  में डूब के तुम मेंहदी से खेलती रहीं. जबकि तुम्हारी ख़ुशी तो कुछ और है और जो उस वक़्त तुम्हारे करीब आने को तड़प रहा था. और तुम झूठी खुशियों से अपना दिल बहलाती रहीं. शायद ये ठीक नहीं था लेकिन अब मैं तुम्हें मना तो नहीं कर सकता क्योंकि पिछले ख़त में , मैं तुम्हें बंदिशों से आजाद कर चुका हूँ अब अपनी मालिक तुम खुद हो.

- शाहिद

इस ख़त का बाकी का हिस्सा लैटर कलेक्शन में है.

तुम्हारी हर बात मंजूर है

10/04/01                                                                                       - प्यार
प्यारी निकहत की प्यारी मम्मी ,
                                                 "अनीसा"
अनीसा मैं ये अक्सर सोचता हूँ कि हम दोनों को न जाने कब तक ख्वाबों ख्यालों की दुनिया में जीना होगा. न जाने ये सब कब हकीकत में बदलेगा . हम दोनों ने न जाने कितने ख्वाब बन लिए हैं- निकहत , खुशनुमा....

अनीसा आज मैं तुम्हें 17 अप्रैल 2000 के उस बदनसीब दिन के बारे में बताने जा रहा हूँ. जब मैं एक गहरे ग़म में था. मैं बुआ के साथ झाँसी जा रहा था . मैं इसीलिए उनके साथ गया था ताकि मैं तुम्हारे लिए कुछ कह सकूं . अनीसा मैं उस वक़्त हद से ज्यादा परेशान था . मेरी आँखें आंसुओं से लबरेज थीं. मैंने इस हालत में बुआ से कहा - अनीसा से कह देना कि वो मुझसे सिर्फ एक बार फोन पर बात क्र ले. मगर अनीसा उन पर मेरे आंसुओं का असर न हुआ. अनीसा यहाँ आंसू हार जाते हैं , बेबसी, बेकरारी, बेचैनी भी हार जाती है.

अनीसा मैंने कई लोगों को देखा है जिनकी शादी हुए एक अर्सा बीत चुका है. फिर भी वो एक दूसरे से दूर नहीं रह पाते . और हम दोनों तो अभी तक ठीक से मिले भी नहीं, दिल भर कर बातें ही न हुयीं.

अनीसा जब "नए दर्द" के हसीं लम्हात आँखों में आते हैं तो न जाने कैसा लगने लगता है. तुम्हें भी होता है न !

अनीसा मैंने तुमसे अपनी जैसी डायरी ( प्यार का सफ़र ) लिखने को कहा था, मगर तुम ऐसा न कर सकी . प्लीज़ जल्दी से तैयार कर लेना . मेरे लिए .

अनीसा मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है . आप जैसा करें , जो भी सोचें मुझे पसंद है . अनीसा मैं हर केस में तैयार हूँ. अनीसा मेरी पसंद के खिलाफ तुम कोई काम करो और फिर सोचो कि मैं, तुमसे गुस्सा हो जाऊंगा . ऐसा हरगिज न होगा . क्योंकि मुझे तुम्हारी उस चाहत से प्यार है जो तुम्हारे दिल में मेरे लिए है. जब दिल करे मुझसे मिलने चली आना . अगर तुम्हें मुहब्बत की फिक्र हो , जमाने से डर न लगे तो मैं तुमसे मिलने भांडेर आ सकता हूँ. ( इल्हाक के संग ) तुम मुझे डेट, टाइम , और जगह फोन पर बता देना. चाहो तो, वरना नहीं.

अनीसा  तुम्हें मेरी कसम तुम ये ख़त पाते ही मुझे लम्बा ही नहीं बहुत लम्बा ख़त लिख देना . मैं इंतज़ार करूंगा . तुम ऐसा करना . मेरे ही घर के पते से डालना . फ्रॉम में लिफ़ाफ़े पर लिखना , विजय , कानपुर. ये मेरा कानपुर का दोस्त है. वैसे मैं खुद ही पोस्ट ऑफिस जाकर ख़त ले लूँगा . घर पर आएगा ही नहीं . अनीसा तुम डरना नहीं . तुम्हें मेरी कसम है लिख देना. मुझे फोन करती रहा करो. मैं इंतज़ार करूंगा अब मुझे सिर्फ दो एग्जाम देने हैं. एक 13 मई झाँसी और एक 17, 18, 19 मई झांसी .

"आसमा और आयशा बाजी के देवर की शादी में जाओ तो अनीसा मुझे इन्फॉर्म करना . बुआ जी कोंच आयें तो आने की कोशिश करना. क्योंकि अनीसा हम दोनों के पास अब यही बहाने हैं मिलने के लिए . क्योंकि पापा अब शायद ही मुझे भांडेर भेजें . अनीसा मैंने पापा का विश्वास पाने के लिए क्या-क्या न किया. 17.02.01 को पापा ने कहा आज ही भांडेर से वापिस आ जाना . अगर मैं चाहता तो क्या मैं नहीं रुक सकता था. बिलकुल रुक सकता था. मेरे पास ढेरों बहाने थे. मगर विश्वास के लिए न किया ऐसा".

"मुहब्बत वो अनोखा फूल है जो हर एक की दिल की बगिया में नहीं खिलता"

अनीसा मैंने अपने बनते-बनते कैरियर को बिखेर दिया. मगर तुम्हारे लिए सिर्फ तुम्हारे लिए. लेकिन तुम ऐसा मत सोचो कि मैंने तुम्हें अपने कैरियर का अहसास दिलाने के लिए लिखा है. ऐसा बिलकुल नहीं है. ये कैरियर क्या अनीसा , मैं खुद को फ़ना कर सकता हूँ तुम्हारे लिए.

"अनीसा तुमसे आरजू है कि मुझे हमेशा वफाओं में रखना" . बेवफा का साया तक न आने देना . किसी बात की फिक्र मत करना .
"बस इतना याद रखना मैं तुम्हारा हूँ मगर तुम भी हमारी हो" याद रखोगी न !

इंतज़ार, इंतज़ार बस मिलने का इंतज़ार !

बाय ! बाय !

आपका प्यार
शाहिद

मैं तुम्हें 9 जून 01 को 12:00 - 1:00 के बीच में फोन करूंगा. तुम ज्योति के यहाँ मिलना [12:30 के करीब]

Monday, July 21, 2014

On Greeting

अनीसा    9th June 2001   शाहिद

योमे पैदाइश मुबारक हो ! 
मेरी साँसों की मुबारकबाद क़ुबूल करें !

इत्तेफाक

अनीसा , ये एक इत्तेफाक ही है कि मैंने पहली बार मुहर्रम की 9 और 10 को रोज़ा रहा और तुम भी रहीं. वाह क्या अजीब इत्तेफाक है.

- शाहिद
21.04.01

तुम मुझे ख़त डालना

अनीसा, अगर तुम मुझे ख़त डालना बेहतर समझो तो लिख देना. वरना मत लिखना . फोन कर सको तो करना वरना न करना.
मैं नहीं चाहता कि तुम मजबूरियों से जूझो और मेरे लिए ज़िन्दगी से लड़ो.
आपका दिल जैसा चाहे , बस वैसा ही . आपकी हाँ में मेरी हाँ है. मेरी नाराजगी की फिक्र मत करना. मैं खुश हूँ.
"बस तुम्हारे लिए ख़ुशी"

- शाहिद
21/04/01

योमे पैदाइश मुबारक हो !

योमे पैदाइश मुबारक हो !
"अनीसा"

लाख कोशिश की मैंने
---------------------

" मेरी साँसों की माला में तुम फूलों की तरह गुथी हो"
- शाहिद 

" मेरी ज़िन्दगी मेरी हर ख़ुशी है मेरी अनीसा
जिस्म की रूह है वो धड़कनों का गीत है मेरी अनीसा "
- शाहिद 

" हम तुमसे जुदा न हों
तुम हमसे जुदा न हो
खुदा करे ऐसा कभी न हो "
- शाहिद

Saturday, July 12, 2014

"प्यार के सफ़र" ( मेरी डायरी )

17/3/1                                                                            - आपका दिल

मेरी ज़िन्दगी -

                           'अनीसा'

मैं तुम्हें सबसे पहले एक बात बता दूँ कि अनीसा प्यार और बदनामी का साथ ऐसा होता है जैसे कि चोली और दामन का साथ होता है. और जब ऐसा ही है तो फिर बदनामी से क्या डरना. मैं सारे लोगों की नज़रों में बदनाम हो चुका हूँ . लेकिन मुझे इसकी कोई फिक्र नहीं . है फिक्र तो सिर्फ तुम्हारी , अपने प्यार की . अनीसा तुमने 18 मई के करीब झाँसी जाने से इनकार कर  दिया, शायद ये सोचकर कि मेरी जिद के आगे तुम्हें झुकना पड़ेगा . जबकि अनीसा ऐसा बिलकुल नहीं है. लेकिन तुमने जो सोचा है वो ठीक ही सोचा है.तुम वहां मत आना 

अनीसा मैं अक्सर पागलों की तरह कहता रहता हूँ कि तुम ऐसा करना , ऐसा नहीं करना , यहाँ जाना , वहां नहीं जाना. मैंने अपने दिल में इसके लिए जद्दोजहद की और मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि मेरा ऐसा करना गलत है अनीसा मैं क्या करूँ? मैं तुम्हें उसी के लिए मना करता हूँ जो मुझे अच्छा नहीं लगता और मुझे अच्छा क्यों नहीं लगता , मैं नहीं जानता अनीसा . अनीसा, मैंने तुम्हें बंदिशों में बाँध रखा है शायद ये ठीक नहीं , और तुम भी सोचती होगी कि आजाद पंछी का खुली वादियों में उड़ने का मजा ही कुछ और होता है. इसलिए अनीसा आज मैं तुम्हें उन सारी बंदिशों से आजाद करता हूँ. जो अब तक तुम उन बंदिशों में जी रही थीं.  लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप प्यार कम करने लगें. आप मुझे बेहद प्यार करें , मैं ऐसी ही उम्मीद करता हूँ . 

लेकिन अनीसा तुमने मुझे जिन बंदिशों में बाँधा है उन बंदिशों में, मैं हमेशा की तरह जीने का वायदा करता हूँ. और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपके द्वारा दी गयी बंदिशें मेरे जिस्म का हिस्सा बन जाएँ . 

Really अनीसा जब हम दोनों 11 मार्च को छत मिले तो मुझे अपने आप पर यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं आपके इतने करीब हूँ  और आप मेरी गोद में लेटी हुयी हैं. 

अनीसा इस बार का मिलन एक आम मिलन नहीं था . अनीसा इस बार पल-पल पर तुम यही कहती रहीं कि शाहिद मुझे ले चलो , मेरा फैसला सुनने के लिए बेकरार रहीं. और मुझे हमेशा -हमेशा को पाने के लिए कहती रहीं. अनीसा मैं रब से यही दुआ करूंगा कि मेरे लिए तुम्हारी ये दीवानगी जिंदा रहे. और आपको आपका शाहिद मिल जाए . 

शायद अनीसा तुमने मुझे उस रात के लिए माफ़ नहीं किया जिस रात मैं तुम्हारा इंतज़ार करता रहा और तुम मेंहदी लगाने में मशगूल रहीं. आपकी आवाज मुझे Torcher करती रही. और मैं तनहा तड़पता रहा. 

शायद अनीसा तुम्हें याद हो "प्यार के सफ़र" ( मेरी डायरी ) में, मैं तुमसे उस तरह से मांग चूका हूँ . शायद दुनिया में किसी ने किसी से न मांगी होगी. याद आया न मैं तुमसे जितनी बार नाराज़ हूँ, तुम मुझसे जितनी बार नाराज़ हो ----------. 

मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि मैं आपकी सहेलियों से न मिल पाया, मुख्यता ज्योति जी से. खैर , मेरा सॉरी बोलना . 

अनीसा मुझे उस वक़्त बहुत ज्यादा प्रॉब्लम होती है जब तुम अपनी वही स्पेशल स्टाइल में अपनी खूबसूरत आँखों पर अपना हाथ रख लेटी हो. और उसे भी चुनरी से ढक लेती हो. सच अनीसा उस वक़्त मुझे बहुत तेज गुस्सा आती है . मैं तुम्हें आदेश नहीं दे रहा हूँ. न ही बंदिश में बाँध रहा हूँ , क्योंकि मैं तुम्हें पहले ही बंदिशों से आजाद क्र चुका हूँ. मेरी तुमसे प्रार्थना है , गुजारिश है , आरजू है कि प्लीज अनीसा ऐसा मत किया करो.मैं ये नहीं सह पता हूँ . जब तुमने 12 मार्च को ऐसा किया तो मैंने दोनों हाथों से दोनों कानों को पकड़ लिया मगर फिर भी तुमने उस जालिम चुनरी को नहीं हटाया. जिसने मेरी प्यारी अनीसा का चेहरा ढक लिया था. अनीसा मैं तो जानता था तुम नहीं सो रही हो , लेकिन अनीसा मेरा दिल तुम्हारी नींद से घबराता है . अनीसा, तुम्हारे करीब बिताया गया मेरा हर एक लम्हा कितना कीमती होता है. तुम तो जानती हो. 

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा कितनी खुशनसीब थी वो चुनरी जो मैंने तुम्हारे चेहरे को उढाई थी. सच अनीसा तुम उस वक़्त मेरी दुल्हन जान पड़ती थी. मुझे ही दूल्हा बना देती तो कितना अच्छा होता. सच अनीसा तुम्हारी सुन्दरता उस वक़्त वो थी, जिसे मैंने उस दिन से पहले कभी न देखा था. और फिर भला ऐसी सुन्दरता को मेरे लफ्ज़ क्या बाँध पायेंगे. 

अनीसा इस बार प्यार करने का तरीका सबसे जुदा था. मैं कैसे बताऊँ. वो मेरा निहारना , और फिर तुम्हारी आँखों का देखने का करीना ही कुछ और था. मेरी मुस्कराहट और तुम्हारी तबस्सुम , क्या कहूँ अनीसा. काश ये प्यार का मौसम हमेशा के लिए आ जाए . और हम ताउम्र प्यार करें बस इसी तरहा.

अनीसा अब उन दो रातों में ( 19 फरवरी 2000, 7 अप्रैल 2000 ) एक रात और जुड़ गयी जो कि 13 मार्च 2001 है जिसे हम दोनों हमेशा याद रखेंगे . इनमें सबसे प्यारी और खूबसूरत रात 13 मार्च 01 है. 

और फिर मजाकिया लहजे में ये और वो ----? आज की रात की तुम्हारी हर अदा निराली थी. अनीसा तुम पर कुर्बान जाए मेरी जान. आपकी हिम्मत , आपकी चाहत, आपका प्यार बस मेरे लिए रहे. अनीसा ऐसा ही होगा न , बोलो न . तुम्हें उस रात की मेरी हर अदा की कसम . अपने लवों को हिला दो. यूँ ही बोल दो. मैं न सही तो तन्हाई के सामने ही सही. बोलो न "हाँ" .

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

वाह क्या अंदाज है . मेरी विदाई करने का तुम्हारा अंदाज सबसे जुदा है. कितने प्यार से हम दोनों एक दूसरे का झूठा खाते हैं. क्या कहूं ? और फिर जाते-जाते वक़्त मेरे गालों पर तुम्हारे होठों का वो हसीं बोसा . बस यूँ ही सब कुछ कायम रहे. 

अनीसा प्यार करने के करीने में तुमने एक और करीना का इजाफा किया है वो ये कि तुम प्यार ही प्यार में अपने होठों से मेरे सीने को चूमती हो. जिसमें तुम्हारा दिल समाया हुआ है. 

19 फरवरी 2000 की वो खुशनसीब रात थी जिसमें मैंने अपने लहू से तुम्हारी मांग को सजाया था. और ये 13 मार्च 2001 की हसीं रात थी जिस रात तुमने अपने हाथों में मेरे आंसुओं को लेकर अपनी मांग में सजाया और अपने लवों से मेरे आंसुओं को पी लिया. 

01.01.01 को आप मेरे लिए कितना परेशान हुयीं. आपके ग़मों को सहने की हद उस वक़्त टूट गयी जब आप ज्योति के सामने रो पड़ीं. और उसने मुझसे बात कराने का वादा किया. फिर भी आप मेरी आवाज़ न सुन सकीं. मैं अपनी आवाज़ के लिए कहूँगा यही कि ये बस आपके लिए निकले. कोई और इस आवाज़ को न सुनने पाए. 

अनीसा तुमने एक जगह लिखा है - 
"आपको खुश रखना मेरा फर्ज है" अनीसा ऐसी बातें मुझे जीने के लिए मजबूर करती हैं. और मैं तुमसे मिलने के लिए तड़प उठता हूँ. प्लीज अनीसा मेरी ज़िन्दगी में आ जाओ. 

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा  आपको बहुत -बहुत शुक्रिया जो आपको भी "नए दर्द" का अहसास है.जिसे आप अक्सर महसूस करती हैं. अनीसा ये जानकार मुझे बहुत ख़ुशी हुयी कि आपको भी "नए दर्द"' का दर्द होता है. और उस वक़्त जब ये दर्द होता है आप मुझे बुलाने की दुआएं मांगने लगती हैं. 

अनीसा मुझे ख़ुशी है कि आपको मेरी ग़ज़लें और नज्में पसंद आने लगीं. लेकिन मुझे एक शिकायत रही कि आपने मुझसे कहा नहीं कि शाहिद कोई एक ग़ज़ल तो सुना दो. मैं अपने लवों से तुम्हारे सामने सुनाना चाहता था. खैर आने वाले कल में मेरी ये शिकायत आप जरूर दूर करेंगी.  उम्मीद करता हूँ. 


मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा इतना बड़ा ख़त लिखा करो कि मैं पढूं और ---- बस पढता ही रहूँ. 

अनीसा जब मैं तुम्हारे पास से आया तो मेरा मन भारी-भारी था. सुबह घर पर रहने का मन नहीं कर रहा था. इसलिए मैं तन्हाई तलाश करने घर से दूर लकड़ियों के ढेरों के आसपास गया . जहाँ मैं लेटा रहा और तुम्हारे संग बिताया हर लम्हे का अक्स अपनी आँखों में उतारता रहा. इसी बीच  आपका फोन आया और पापा ने आपसे बात की . मुझे शीरीं ने बताया . मैं परेशान हो गया और रोने  लगा. फिर मम्मी ने पूरी बात बताई , मैं फिर से रोने लगा. मम्मी ने बताया पापा कह रहे थे- शाहिद अभी तक नहीं माने.  मेरे बारे में मम्मी से काफी कुछ कहते रहे , अकेले में. मुझसे कुछ नहीं कहा. 

अनीसा तुम फिक्र मत करना . पापा मुझसे ठीक से बात कर रहे हैं. कोई प्रॉब्लम नहीं है. सब कुछ नार्मल है. 

मम्मी जरूर मुझसे हद से ज्यादा गुस्सा हुयीं.बुरा भला कहा , बददुआएं दीं . मर जाने तक के लिए कहा. कहने लगीं - मेरी नज़रों के सामने से दूर चले जाओ . तुम मेरे लड़के नहीं हो. तुम जैसा बीटा न होता तो अच्छा होता. 

अनीसा मेरी जगह उस वक़्त कोई और होता तो शायद मर जाता . या घर से भाग जाता. मम्मी ने इतना बुरा भला कहा. 

लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. बस तुम्हारे प्यार को दिल में बसाये रहा. तुम्हें हासिल करने की रब से दुआएं मांगता रहा. 

मैं जब नहाने गया तो उसी दरमियाँ फिर रोने लगा. बस यूँ ही रोता और बस रोता ही रहा. अब काफी कुछ ठीक है. वक़्त वो मरहम है जो   नासूर जैसे जख्मों तक को भर देता है. 

अनीसा इल्हाक ने मुझे तुरंत सुबह ख़त दे दिया था. अनीसा तुमने बिलकुल ठीक लिखा है कि जब भी हम दोनों को थोड़ी सी ख़ुशी मिली उससे ज्यादा रोना पड़ा. अनीसा तुम इतना ज्यादा परेशां थीं और फिर भी तुमने मुझे समझाया और मुझे ख़त में फिक्र न करने के लिए कहा. अनीसा प्यार में ऐसा नहीं होता है . जो भी ग़म आएगा हम दोनों हंस कर उसे साथ-साथ सहेंगे क्योंकि ये प्यार की रस्म है, कोई दुनिया की रस्म नहीं . मम्मी ने चौथी के लिए मुझे मना कर दिया है , वैसे कल रशीद भाईजान का फोन आया था . सॉरी अनीसा मैं मजबूरियों के कारण नहीं आ पा रहा हूँ. 


मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा तुम खुश रहना . मेरी फिक्र मत करना. मैं जैसा भी हूँ. ठीक हूँ. 

अनीसा इस बार फिर तुमने अपना सिर मेरे पैरों में रख दिया , ऐसा मत किया करो अनीसा. क्योंकि हम दोनों बराबर हैं. कोई एक दुसरे से छोटा बड़ा नहीं है . 

मेरी दुल्हनियां सारे गिले, सारे  शिकवे भूलकर मेरे प्यार से प्यार करो. और मन से अपने एग्जाम देना . अनीसा एग्जाम ख़त्म होने तक चाहो तो मुझे फोन मत करना. अपने एग्जाम अच्छी तरह देना. मेरा तोहफा तुम्हारी फर्स्ट डिवीजन होगी. उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे इस तोहफे को देने में कोई ढिलाई नहीं करोगी. अपनी पूरी कोशिश करोगी मुझे ये तोहफा देने में . मेरी गुड विसिज और गुड लक एंड बेस्ट ऑफ़ लक तुम्हारे साथ में है. करोगी न ऐसा. प्लीज़  ....

अनीसा मैंने 14/1/1 को ज्योति को फोन किया था. मगर बात न हो पायी. अनीसा कुछ ऐसा करो कि उससे मेरी बात हो जाया करे और मैं अपना कोई जरूरी पयाम तुम तक पहुंचा सकूं. इसके लिए मैं लिख रहा हूँ कि मैं सुबह 11-12 या शाम 5-7 के बीच में ज्योति को फोन किया करूंगा और मैं जैसे ही रिसीवर उठाऊं तो मैं दो बार हेलो-हेलो कहूँगा जिसके जवाब में ज्योति भी हेलो -हेलो दो बार कहे. और फिर कहे मैं ज्योति जिससे मेरी उससे बात हो जाया करेगी. तुम कल ही उससे ये कह देना प्लीज़ ....

एग्जाम ख़त्म होने के बाद तुम मुझे फोन कर लिया करो. सुबह पापा ने पढ़ाना बंद कर दिया है. जिससे वो घर पर ही रहते हैं. तुम 11:15 के बाद 1:15 तक फोन कर लिया करो या 2:15 से शाम 4:30 तक कर लिया करो. 

मैंने कंप्यूटर क्लास लेना बंद कर दिया है. इसलिए घर पर ही रहता हूँ. तुम फोन जरूर करना हमें और तुम्हें डरना नहीं है, दुनिया का सामना करना है . तुमने मुझे अपने ख़त में ठीक मना कर दिया - जोश में आके शाहिद कुछ न करना. यकीन करो अनीसा मैं जोश में एक अजीब सी ----- करने वाला था. अब सब कुछ नार्मल है तुम मुझे जरूर फोन करना एग्जाम के बाद . पापा किसी से कुछ नहीं कहेंगे . मैं अच्छी तरह जानता हूँ. क्योंकि वो भी किसी जमाने में प्रेमी थे. मैं तुम्हें अपना प्रोग्राम लिख रहा हूँ जब मैं कोंच में नहीं हूँगा. 17 मई 01 से 19 मई 01 तक झाँसी में मेरा एग्जाम है . आयशा बाजी के पास जाऊंगा. 21 मई 01 - 22 मई 01 ( अभी क्लियर नहीं ). ग्वालियर में एग्जाम है . 14 मई 01- 16 मई 01 लखनऊ में एग्जाम है. 17 जून 01 से 19 जून 01 तक अलीगढ़ में एग्जाम है. मेरी कामयाबी के लिए दुआ करना. 

"कोई गलत कदम मत उठाना , इसे मत भूलना "  - शाहिद 
यूँ गेसुओं के साए में अपने चेहरे को न छिपाया कीजिये 
करीब न आओ मगर दूर से ही मुस्कुराया कीजिये
- शाहिद 

अभी बीच में जल्दी फोन कर देना "उसके लिए" कुछ हुआ तो नहीं ? अनीसा, मेरी बीबी, मेरी ज़िन्दगी, मेरी जान खुश रहना . कोई फिक्र न करना . मेरी नाराजगी के बारे में कुछ न सोचना. मैं तुमसे खुश हूँ. और शायद तुम भी मुझसे खुश होगी. और अगर नाराज़ हो तो उस नाराजगी के लिए एक बार फिर माफ़ी मांग रहा हूँ. घुटने टेक कर माफ़ कर दीजिये. 

मुझे याद करती रहना , फोन करती रहना. दुआओं में रब से मुझे मांगती रहना . हौसला रखना दिल में. हम मिलेंगे जरूर मिलेंगे. रब एक न एक दिन जरूर मिलाएगा. आंसुओं से दूर रहना, यानी कतई नहीं रोना. मैं आऊंगा . चाहो तो झाँसी चली जाना. बस रोना नहीं, खुश रहना . 

तुम्हारी सलामती - आपका नादान शाहिद 
17 मार्च 01 

तुम अक्सर सोचती हो- फांसी , जहर ----- ये सब बुझदिल करते हैं. जो हमारे प्यार का दुश्मन है वो हम दोनों का दुश्मन है . हम दोनों को तो दुनिया से लड़ना है. 
- शाहिद

Friday, July 11, 2014

मैं तुमसे प्यार करता हूँ

अनीसा अपने प्यार के सफ़र में मेरी नज़र में सबसे बुरे लम्हे 7 Apr. 2000 की शाम थी. जब मैंने तुमसे फोन पर बात की . मेरा तुमसे बात करना इसलिए जरूरी हो गया था क्योंकि मैं तुमसे नाराज़ होकर आया था. मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने के बाद तुम अपने आपको अश्कों की महफ़िल में पेश करो. फोन करने की गलती मेरी थी ( लेकिन फोन करना जरूरी था, तुम्हें मनाने के लिए ) लेकिन अनीसा मेरी नाराजगी तुम्हारे कारण थी. क्योंकि तुमने मुझसे 'कुछ' ( मुझे पता है ) कहा था, न तुम 'कुछ' कहतीं न मैं नाराज़ होता , न मैं शाम             ( 7 Apr. 2000 ) को फोन करता , न किसी कोअपने प्यार का पता चलता , न पापा मुझसे नाराज होते , न मैं झांसी से बुलाया जाता . 

जैसे ही मैंने तुमसे फोन पर बात की तुम रो पड़ीं और मैं भी बुरी तरह फोन पर ही रो पड़ा . बस स्टेंड से रूम तक के रास्ते में रोता रहा और फिर जब रूम पर पहुंचा तो, बिना दरवाजा खोले ही मैं दरवाजे से सिर टेककर रोता रहा, फिर रात के समय प्रदीप के साथ पार्क गया तो वहां भी रोता रहा. मैंने प्रदीप से बात नहीं की वो मुझे ढअंढस बंधाता रहा. 

17/2/1 को जब मैं भांडेर गया तो सबसे पहले बल्लू मिले. मैंने बल्लू से हाथ मिलाया , सलाम किया, पर वो न बोले. 'अनीसा मैं सिद्धांतवादी, धर्मवादी हूँ. मेरे सिद्धांतों में एक ऐसा सिद्धांत है कि अगर दुश्मन भी मिले तो उसे सलाम करो' . फिर भी बल्लू मुझसे न बोले , अगर अनीसा , तुम बल्लू से न बोलो तो बेहतर होगा. क्योंकि हम प्यार करने वालों की नज़र में , प्यार के दुश्मन हमारे दुश्मन होते हैं. 

ये सब जिस कारण हुआ वो था तुम्हारा 'कुछ' कहना. " इसलिए 'कुछ' कहने से पहले कुछ ही सोच लिया करो कि तुम ये अपनी ज़िन्दगी के मालिक से कहने जा रही हो" 

Relax अनीसा, " मैं तुम्हारा हूँ और तुम हमारी हो" 
सारे गिले, सारे शिकवे भूल जाओ और "हम एक दुसरे का कभी दामन न छोड़ेंगे , ये कभी मत भूलना. चाहे हम दोनों फ़ना हो जाएँ. "

English में अच्छा नहीं लगता , इसलिए लिख रहा हूँ - 
मेरी बीबी, मेरे हमसफ़र, मेरे जिस्मो जां में रहने वाली, मेरी और सिर्फ मेरी, ज़िन्दगी अनीसा- 
मैं तुमसे प्यार करता हूँ 

- तुम्हारा और केवल तुम्हारा
     शाहिद

28/02/1

Monday, July 7, 2014

तुम्हीं ने मुझे शायर बनाया

25-02-01

प्यारी दुल्हन अनीसा ( शाहिद की दीवानी )

अनीसा मुझे तुमसे एक शिकायत है वो ये है कि तुम्हें पता है 1/1/99 से मैंने अपना शायराना सफ़र शुरू किया था. तुमने 1/1/2k और न ही 1-1-1 को फोन किया. और अगर फोन किया भी तो New Year Wish करने के लिए . जबकि अब तो तुम्हें अच्छे से पता है कि मेरे लेख ' दैनिक जागरण' जैसे प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाषित हो रहे हैं  फिर भी तुमने मुझे एक बार भी मुबारकबाद नहीं दी. जबकि तुम ये भी अच्छे से जानती हो कि तुम्हीं ने मुझे शायर बनाया. अनीसा तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरी शायरी मेरी ग़ज़लों और मेरे लेखों की तारीफ में पूरी दुनिया ( मेरे दोस्त, मेरे Relatives ) कसीदे कढ़ रही है. एक तुम्हीं हो जिसने मेरी शायरी के बारे में , जो कि तुम्हारे लिए , सिर्फ तुम्हारे लिए है , एक कसीदा नहीं गढ़ा . अनीसा मैं फिर लिख रहा हूँ कि मेरी हर एक ग़ज़ल एक पयाम लिए होती है तुम्हारे लिए.

मैं एक बात और लिख रहा हूँ कि अगर आप अगले ख़त में शायर या अनीसा का दीवाना कहकर मुखातिब करें तो मेरी रूह एक खुशी महसूस करेगी. शायद तुम ऐसा करोगी.

इस सब को अन्यथा न लेना , मैंने तो यूँ ही लिख दिया. अनीसा मैं तुम्हें बता दूं  कि अब तुम मेरी साँसों से भी ज्यादा जरूरी हो गयी हो. जब साँसों के बिना नहीं जिय जा सकता तो तुम्हारे बिना कैसे जिया जा सकता है ?

अनीसा इस वक़्त मैं यही सोच रहा हूँ - हम दोनों चांदनी रात में तन्हा बैठे हुए हैं . अपने आसपास कोई भी नहीं. है अगर तो सिर्फ अपना प्यार , मेरी साँसें और तुम्हारी साँसें , और आज तुम भी बिलकुल डरी हुयी नहीं हो . मुझसे प्यार करने हमेशा-हमेशा के लिए हमारे पास आ गयी हो . तुम्हारी गोद में मेरा सिर है और मेरे हाथ उन कलाईयों पर हैं जिनमें मेरे नाम की तुम चूड़ियाँ पहने हो.

और तुम्हारे हाथ मेरे उलझे हुयी जुल्फों को सुलझा रहे हैं. और तुम्हारे प्यारे-प्यारे जो होंठ हैं वो बार-बार एक पल के लिए मेरे होठों को चूम रहे हैं.  और जब तुम मेरे होंठों को चूम रही होती हो तो तुम्हारे गेसू मेरे गालों पर इस तरह आ रहे हैं मानो तुम्हारे गेसू मेरे होठों का पर्दा हों.

क्या अनीसा तुमने कभी इस तरह के मौसम के बारे में सोचा है ? जरूर सोचा होगा , क्योंकि हर मुहब्बत करने वाले के दिल में इस तरह के ख़यालात आते हैं.

और फिर अनीसा ये मुहब्बत करने का मौसम भी तो है . यानी वसंत का मौसम, मस्ती में झूमने का मौसम .

अनीसा तुम्हें याद होगा कि तुमने मुझसे कहा था कि हाँ मैं खुद ही आपसे कह दिया करूंगी. यहाँ पर अनीसा रूह से निकला मैं वो अन्तरंग लिख रहा हूँ जिसे लिखना ठीक तो नहीं मगर लिखा जाये तो हर्ज नहीं.

शायद अब भी आपको वो गुनगुनी धूप में छत पर दिया हुआ वादा याद नहीं आया . शायद याद आ गया, फिर भी मैं बता दूं  ( तुम तो कह नहीं सकती मगर क्यों ? ये तो वादा को तोड़ना हुआ ) 


मैं उस 'नए दर्द' के बारे में बात कर रहा हूँ जिसे अक्सर तुम सोते वक़्त महसूस करती हो. शायद अब आपको याद आ रही होगी वो '19 Feb. 2k और 7 Apr, 2k कीखुशनसीब रात. मेरे अनुसार सिर्फ दो ही रातें थीं. जिनमें हमने तन्हाईयों में आसिंयाँ बनाया था. मैं जानता हूँ तुम्हारे अनुसार और भी होंगी . अब भी मैं अजीब सा अहसास महसूस कर  रहा हूँ. और शायद तुम भी महसूस कर रही हो. है न ! अरे अब तो बोल दो प्यारी अनीसा , शाहिद की जान .

अनीसा अपने प्यार के दामन में कुछ इस तरह बाँध लो कि हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे पास रहूँ.

अनीसा अक्सर तुम मेरे ख्वाबों में आती हो और कुछ इस तरह बाँटें होती हैं--

मैं ( अपने हाथ तुम्हारे गालों पे रखे हुए ) - "अनीसा मुझे इतना प्यार करती हो "
तुम ( अपने हाथ मेरे गालों पे रखे हुए ) - " आप हमेशा यही क्यूँ पूछते हो ?
बस यूँ ही
" आज मैं आपसे जी भर के बातें करूंगी"  
" आज मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करूंगा " 
( इसी सब में चुपके से , तुम अपने होठों से मेरे होठों  को चूम लेती हो ) और फिर से बातों का सिलसिला शुरू होता है. 

"क्या अनीसा तुम्हें वो दिन ( 19 Feb. ) याद है जब ,मैंने तुम्हारी मांग को सजाया था. 
अरे , मेरी ज़िन्दगी के मालिक शाहिद , मैं कैसे भूल सकती हूँ. अपनी उस मांग को जिसे तुमने अपने लहू से सजाया था और फिर उस लहू के हर क़तरे पर मेरा नाम लिखा था. 

"इतना न कहो अनीसा , बस " ( होठों पर हाथ रखते हुए ) 
" शाहिद मुझे ले चलो , अब तन्हा नहीं जिया जाता. " 
और इसी के साथ तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेती हो,   और सिसकियाँ भर-भर कर रोने लगती हो . 
--- और फिर मैं भी रोने लगता हूँ . 

ये, अनीसा, मेरा वो ख्वाब है , जिसे मैं तन्हाईयों में सोचता रहता हूँ . अलविदा, अनीसा 

- तुम्हारा दिल " SHAHID"

हर लम्हे का अक्स

19 Feb. 2000 को बिताये गए हर लम्हे का अक्स आज भी मेरी आँखों में बिलकुल उस वक़्त की तरह मौजूद है. अनीसा आज का दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ . इस दिन तुमने अपनी साँसों में मेरी साँसों को समा लिया था. और मुझे जी भर के प्यार किया था. अपना सब कुछ अपने शाहिद पर लुटा दिया था.

अनीसा मैं मानता हूँ कि मैं अच्छी शायरी करने लगा हूँ. अच्छे लेख लिखने लगा हूँ. अच्छी ग़ज़लें लिखने लगा हूँ . मगर अनीसा मेरे पास ऐसी कोई शायरी या ग़ज़ल नहीं जो आपकी तारीफ़ बयां कर सके.

मेरी कलम हार गयी आपके कारनामे जीत गए. क्योंकि आपका ये कारनामा मेरी कलम कि लिखावट से ऊपर उठकर है.

शुक्रिया मेरी जान अनीसा शुक्रिया.

अनीसा, अपने शाहिद पर अपना सब कुछ लुटाकर शाहिद को प्यार कि जन्नत का अहसास कराया. ऐ प्यार की जन्नत की मलिका , अनीसा, तुम पर सौ-सौ बार मेरी जान कुर्बान ......

इंतज़ार करता रहा.

मेरी ' दुल्हनियां अनीसा '

16/02/01 को जैसे ही तुम्हारे पास आने का डिसाइड  हुआ , अनीसा मैं तनिक भी न सो पाया उस रात. मैं पूरी रात, रात ख़त्म होने का इंतज़ार करता रहा.

पूरी रात करवटें बदलते हुए तुम्हारे साथ बिताने के लम्हों के ख्वाब बुनता रहा.

लेकिन अनीसा मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक़्त न बिता सका.

अनीसा, मैं हर बार तुमसे कहता था कि तुम मुझे वक़्त नहीं देती . इस बार मैं तुम्हें वक़्त न दे सका. इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ.  प्लीज माफ़ कर दीजिये.

शायद अनीसा तुम्हारे होठों को चूमे बिना ही जाना नमुमकिन था. इसीलिए रब ने कुछ ऐसा किया और मैं तुम्हारे पास दोबारा आया. और तुम उस वक़्त तन्हा मिलीं ये भी किस्मत की बात थी और रब का करम था.

जैसे ही मैंने आपको देखा तो मैंने आपके गालों को चूमने का मन बनाया मगर होठों को तो कुछ और ही मंज़ूर था .

शुक्रिया ' अल्लाह तआला '

- शाहिद
19/02/01

Friday, July 4, 2014

अजीब सा ख्वाब

अनीसा आज मैंने बड़ा अजीब सा ख्वाब देखा. जो कि शायद हम दोनों नहीं चाहते. 
आज अनीसा हम दोनों दुनिया के पहरों से तंग आ चुके थे. आज दुनिया से डर कर हम दोनों भागते जा रहे थे. और साड़ी दुनिया हमारा पीछा कर रही थी. हम दोनों एक दूसरे को दिल में बसाए चलते जा रहे थे. हमें अपने प्यार को जिंदा रखना था. ये दुनिया वाले उसे मार देना चाहते थे . 

अनीसा , आ जाओ , PLEASE , अपने प्यार को बचा लो ! 

- शाहिद
18/01/01

Thursday, July 3, 2014

वक़्त आ गया

अनीसा अब वो वक़्त आ गया है कि तुम्हें मम्मी जी और पापा जी से कहाँ होगा कि मैं शाहिद से ही शादी करूंगी . लेकिन गर तुम्हें कहीं से 'न' कहती हुयी आवाज़ सुनाई दे तो तुम मत कहना. क्योंकि अनीसा दिल की आवाज़ हमेशा सच होती है. हमें और तुम्हें अपने दिल की सुनना है  जो दिल कहे वही करना है. अनीसा इस शाहिद की कीमात ही क्या है ? कोई कीमत नहीं.

अनीसा तुम्हें एक बार क्या अगर हजारहा बार इस शाहिद को कुर्बान करना पड़े तो कुर्बान कर देना. जो मुझमें और तुम में है वो एक ऐसी शै है कि ये जिन दोनों के बीच होती है उन दोनों की कीमत नहीं होती. मगर इसकी अपनी खुद की यानी मुहब्बत की कीमत होती है.

इसलिए अनीसा मेरी तुमसे आरजू है कि चाहे हम दोनों को खुद को फ़ना करना पड़े या तुम्हें मुझसे जुदा होना पड़े तो तुम जुदा हो जाना लेकिन इस मुहब्बत को जिंदा बनाये रखना. क्योंकि गर अनीसा मुहब्बत ख़त्म हुयी तो मुहब्बत परस्तों का मुहब्बत से ऐतवार उठ जायेगा और लोग मुहब्बत को झूठा कहेंगे जो कि हम प्रेमी नहीं चाहते , कभी नहीं .

- 'शाहिद'
15/01/01 

Tuesday, July 1, 2014

Phone Line

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7th Apr. 2000

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2nd Jan. 2001

15th Jan. 2001

29th  Jan. 2001

14th Feb. 2001

19th Feb. 2001

24th Feb. 2001

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27th Mar. 2001

2nd May. 2001

10th June 2001

14th June. 2001

21st June. 2001 

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28th Aug. 2001

2nd Sep. 2001

27th Sep. 2001 

14th Oct. 2001

28th Oct. 2001

16th Nov. 2001

2nd Dec. 2001- MT

10th Feb. 2002

14th Feb. 2002

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2nd June. 02

9th June 02

5th Aug. 02

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6th May. 03

18th May. 03

19th May. 03 ( Night 12:45)

19th May. 03

25th May. 03 ( 12:00-12:31)

1st June 03

14th June. 03

15th June. 03

15th June. 03 ( College )

16th June. 03