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Saturday, June 28, 2014

हर दिन और हर रात

' बातों ही बातों में वो होठों में ऊँगली दबाना तेरा 
इक तबस्सुम के संग वो मुझसे दूर जाना तेरा 
मुझको रुला रहा है, मुझको रुला रहा है ' 

- शाहिद 
' हर दिन और हर रात अब मैं ग़म में रहता हूँ 
मेरी हंसी अब तेरे लवों से आती है '

- शाहिद 

' आफताब के माफिक रोशन रहें आप 
बहारों के दरमियाँ हर दम रहें आप 
ज़िन्दगी की रानाई को क़रीब से देखें 
ताउम्र यूँ ही हंसती रहें आप '

- शाहिद 

' मैं रोता हूँ और रोता ही चला जाऊंगा 
बस तुम सीने से लगाने की इजाजत दे दो'

- शाहिद 

' इश्क़ की आग में जले हैं हम 
मुहब्बत के समंदर में डूबे हैं हम 
ताउम्र तुम्हीं से प्यार करते रहेंगे '

- शाहिद