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Monday, July 7, 2014

हर लम्हे का अक्स

19 Feb. 2000 को बिताये गए हर लम्हे का अक्स आज भी मेरी आँखों में बिलकुल उस वक़्त की तरह मौजूद है. अनीसा आज का दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ . इस दिन तुमने अपनी साँसों में मेरी साँसों को समा लिया था. और मुझे जी भर के प्यार किया था. अपना सब कुछ अपने शाहिद पर लुटा दिया था.

अनीसा मैं मानता हूँ कि मैं अच्छी शायरी करने लगा हूँ. अच्छे लेख लिखने लगा हूँ. अच्छी ग़ज़लें लिखने लगा हूँ . मगर अनीसा मेरे पास ऐसी कोई शायरी या ग़ज़ल नहीं जो आपकी तारीफ़ बयां कर सके.

मेरी कलम हार गयी आपके कारनामे जीत गए. क्योंकि आपका ये कारनामा मेरी कलम कि लिखावट से ऊपर उठकर है.

शुक्रिया मेरी जान अनीसा शुक्रिया.

अनीसा, अपने शाहिद पर अपना सब कुछ लुटाकर शाहिद को प्यार कि जन्नत का अहसास कराया. ऐ प्यार की जन्नत की मलिका , अनीसा, तुम पर सौ-सौ बार मेरी जान कुर्बान ......