अनीसा अपने प्यार के सफ़र में मेरी नज़र में सबसे बुरे लम्हे 7 Apr. 2000 की शाम थी. जब मैंने तुमसे फोन पर बात की . मेरा तुमसे बात करना इसलिए जरूरी हो गया था क्योंकि मैं तुमसे नाराज़ होकर आया था. मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने के बाद तुम अपने आपको अश्कों की महफ़िल में पेश करो. फोन करने की गलती मेरी थी ( लेकिन फोन करना जरूरी था, तुम्हें मनाने के लिए ) लेकिन अनीसा मेरी नाराजगी तुम्हारे कारण थी. क्योंकि तुमने मुझसे 'कुछ' ( मुझे पता है ) कहा था, न तुम 'कुछ' कहतीं न मैं नाराज़ होता , न मैं शाम ( 7 Apr. 2000 ) को फोन करता , न किसी कोअपने प्यार का पता चलता , न पापा मुझसे नाराज होते , न मैं झांसी से बुलाया जाता .
जैसे ही मैंने तुमसे फोन पर बात की तुम रो पड़ीं और मैं भी बुरी तरह फोन पर ही रो पड़ा . बस स्टेंड से रूम तक के रास्ते में रोता रहा और फिर जब रूम पर पहुंचा तो, बिना दरवाजा खोले ही मैं दरवाजे से सिर टेककर रोता रहा, फिर रात के समय प्रदीप के साथ पार्क गया तो वहां भी रोता रहा. मैंने प्रदीप से बात नहीं की वो मुझे ढअंढस बंधाता रहा.
17/2/1 को जब मैं भांडेर गया तो सबसे पहले बल्लू मिले. मैंने बल्लू से हाथ मिलाया , सलाम किया, पर वो न बोले. 'अनीसा मैं सिद्धांतवादी, धर्मवादी हूँ. मेरे सिद्धांतों में एक ऐसा सिद्धांत है कि अगर दुश्मन भी मिले तो उसे सलाम करो' . फिर भी बल्लू मुझसे न बोले , अगर अनीसा , तुम बल्लू से न बोलो तो बेहतर होगा. क्योंकि हम प्यार करने वालों की नज़र में , प्यार के दुश्मन हमारे दुश्मन होते हैं.
ये सब जिस कारण हुआ वो था तुम्हारा 'कुछ' कहना. " इसलिए 'कुछ' कहने से पहले कुछ ही सोच लिया करो कि तुम ये अपनी ज़िन्दगी के मालिक से कहने जा रही हो"
Relax अनीसा, " मैं तुम्हारा हूँ और तुम हमारी हो"
सारे गिले, सारे शिकवे भूल जाओ और "हम एक दुसरे का कभी दामन न छोड़ेंगे , ये कभी मत भूलना. चाहे हम दोनों फ़ना हो जाएँ. "
English में अच्छा नहीं लगता , इसलिए लिख रहा हूँ -
मेरी बीबी, मेरे हमसफ़र, मेरे जिस्मो जां में रहने वाली, मेरी और सिर्फ मेरी, ज़िन्दगी अनीसा-
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- तुम्हारा और केवल तुम्हारा
शाहिद
28/02/1
जैसे ही मैंने तुमसे फोन पर बात की तुम रो पड़ीं और मैं भी बुरी तरह फोन पर ही रो पड़ा . बस स्टेंड से रूम तक के रास्ते में रोता रहा और फिर जब रूम पर पहुंचा तो, बिना दरवाजा खोले ही मैं दरवाजे से सिर टेककर रोता रहा, फिर रात के समय प्रदीप के साथ पार्क गया तो वहां भी रोता रहा. मैंने प्रदीप से बात नहीं की वो मुझे ढअंढस बंधाता रहा.
17/2/1 को जब मैं भांडेर गया तो सबसे पहले बल्लू मिले. मैंने बल्लू से हाथ मिलाया , सलाम किया, पर वो न बोले. 'अनीसा मैं सिद्धांतवादी, धर्मवादी हूँ. मेरे सिद्धांतों में एक ऐसा सिद्धांत है कि अगर दुश्मन भी मिले तो उसे सलाम करो' . फिर भी बल्लू मुझसे न बोले , अगर अनीसा , तुम बल्लू से न बोलो तो बेहतर होगा. क्योंकि हम प्यार करने वालों की नज़र में , प्यार के दुश्मन हमारे दुश्मन होते हैं.
ये सब जिस कारण हुआ वो था तुम्हारा 'कुछ' कहना. " इसलिए 'कुछ' कहने से पहले कुछ ही सोच लिया करो कि तुम ये अपनी ज़िन्दगी के मालिक से कहने जा रही हो"
Relax अनीसा, " मैं तुम्हारा हूँ और तुम हमारी हो"
सारे गिले, सारे शिकवे भूल जाओ और "हम एक दुसरे का कभी दामन न छोड़ेंगे , ये कभी मत भूलना. चाहे हम दोनों फ़ना हो जाएँ. "
English में अच्छा नहीं लगता , इसलिए लिख रहा हूँ -
मेरी बीबी, मेरे हमसफ़र, मेरे जिस्मो जां में रहने वाली, मेरी और सिर्फ मेरी, ज़िन्दगी अनीसा-
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- तुम्हारा और केवल तुम्हारा
शाहिद
28/02/1