25-02-01
प्यारी दुल्हन अनीसा ( शाहिद की दीवानी )
अनीसा मुझे तुमसे एक शिकायत है वो ये है कि तुम्हें पता है 1/1/99 से मैंने अपना शायराना सफ़र शुरू किया था. तुमने 1/1/2k और न ही 1-1-1 को फोन किया. और अगर फोन किया भी तो New Year Wish करने के लिए . जबकि अब तो तुम्हें अच्छे से पता है कि मेरे लेख ' दैनिक जागरण' जैसे प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाषित हो रहे हैं फिर भी तुमने मुझे एक बार भी मुबारकबाद नहीं दी. जबकि तुम ये भी अच्छे से जानती हो कि तुम्हीं ने मुझे शायर बनाया. अनीसा तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरी शायरी मेरी ग़ज़लों और मेरे लेखों की तारीफ में पूरी दुनिया ( मेरे दोस्त, मेरे Relatives ) कसीदे कढ़ रही है. एक तुम्हीं हो जिसने मेरी शायरी के बारे में , जो कि तुम्हारे लिए , सिर्फ तुम्हारे लिए है , एक कसीदा नहीं गढ़ा . अनीसा मैं फिर लिख रहा हूँ कि मेरी हर एक ग़ज़ल एक पयाम लिए होती है तुम्हारे लिए.
मैं एक बात और लिख रहा हूँ कि अगर आप अगले ख़त में शायर या अनीसा का दीवाना कहकर मुखातिब करें तो मेरी रूह एक खुशी महसूस करेगी. शायद तुम ऐसा करोगी.
इस सब को अन्यथा न लेना , मैंने तो यूँ ही लिख दिया. अनीसा मैं तुम्हें बता दूं कि अब तुम मेरी साँसों से भी ज्यादा जरूरी हो गयी हो. जब साँसों के बिना नहीं जिय जा सकता तो तुम्हारे बिना कैसे जिया जा सकता है ?
अनीसा इस वक़्त मैं यही सोच रहा हूँ - हम दोनों चांदनी रात में तन्हा बैठे हुए हैं . अपने आसपास कोई भी नहीं. है अगर तो सिर्फ अपना प्यार , मेरी साँसें और तुम्हारी साँसें , और आज तुम भी बिलकुल डरी हुयी नहीं हो . मुझसे प्यार करने हमेशा-हमेशा के लिए हमारे पास आ गयी हो . तुम्हारी गोद में मेरा सिर है और मेरे हाथ उन कलाईयों पर हैं जिनमें मेरे नाम की तुम चूड़ियाँ पहने हो.
और तुम्हारे हाथ मेरे उलझे हुयी जुल्फों को सुलझा रहे हैं. और तुम्हारे प्यारे-प्यारे जो होंठ हैं वो बार-बार एक पल के लिए मेरे होठों को चूम रहे हैं. और जब तुम मेरे होंठों को चूम रही होती हो तो तुम्हारे गेसू मेरे गालों पर इस तरह आ रहे हैं मानो तुम्हारे गेसू मेरे होठों का पर्दा हों.
क्या अनीसा तुमने कभी इस तरह के मौसम के बारे में सोचा है ? जरूर सोचा होगा , क्योंकि हर मुहब्बत करने वाले के दिल में इस तरह के ख़यालात आते हैं.
और फिर अनीसा ये मुहब्बत करने का मौसम भी तो है . यानी वसंत का मौसम, मस्ती में झूमने का मौसम .
अनीसा तुम्हें याद होगा कि तुमने मुझसे कहा था कि हाँ मैं खुद ही आपसे कह दिया करूंगी. यहाँ पर अनीसा रूह से निकला मैं वो अन्तरंग लिख रहा हूँ जिसे लिखना ठीक तो नहीं मगर लिखा जाये तो हर्ज नहीं.
शायद अब भी आपको वो गुनगुनी धूप में छत पर दिया हुआ वादा याद नहीं आया . शायद याद आ गया, फिर भी मैं बता दूं ( तुम तो कह नहीं सकती मगर क्यों ? ये तो वादा को तोड़ना हुआ )
मैं उस 'नए दर्द' के बारे में बात कर रहा हूँ जिसे अक्सर तुम सोते वक़्त महसूस करती हो. शायद अब आपको याद आ रही होगी वो '19 Feb. 2k और 7 Apr, 2k कीखुशनसीब रात. मेरे अनुसार सिर्फ दो ही रातें थीं. जिनमें हमने तन्हाईयों में आसिंयाँ बनाया था. मैं जानता हूँ तुम्हारे अनुसार और भी होंगी . अब भी मैं अजीब सा अहसास महसूस कर रहा हूँ. और शायद तुम भी महसूस कर रही हो. है न ! अरे अब तो बोल दो प्यारी अनीसा , शाहिद की जान .
अनीसा अपने प्यार के दामन में कुछ इस तरह बाँध लो कि हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे पास रहूँ.
अनीसा अक्सर तुम मेरे ख्वाबों में आती हो और कुछ इस तरह बाँटें होती हैं--
मैं ( अपने हाथ तुम्हारे गालों पे रखे हुए ) - "अनीसा मुझे इतना प्यार करती हो "
तुम ( अपने हाथ मेरे गालों पे रखे हुए ) - " आप हमेशा यही क्यूँ पूछते हो ?
बस यूँ ही
" आज मैं आपसे जी भर के बातें करूंगी"
" आज मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करूंगा "
( इसी सब में चुपके से , तुम अपने होठों से मेरे होठों को चूम लेती हो ) और फिर से बातों का सिलसिला शुरू होता है.
"क्या अनीसा तुम्हें वो दिन ( 19 Feb. ) याद है जब ,मैंने तुम्हारी मांग को सजाया था.
अरे , मेरी ज़िन्दगी के मालिक शाहिद , मैं कैसे भूल सकती हूँ. अपनी उस मांग को जिसे तुमने अपने लहू से सजाया था और फिर उस लहू के हर क़तरे पर मेरा नाम लिखा था.
"इतना न कहो अनीसा , बस " ( होठों पर हाथ रखते हुए )
" शाहिद मुझे ले चलो , अब तन्हा नहीं जिया जाता. "
और इसी के साथ तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेती हो, और सिसकियाँ भर-भर कर रोने लगती हो .
--- और फिर मैं भी रोने लगता हूँ .
ये, अनीसा, मेरा वो ख्वाब है , जिसे मैं तन्हाईयों में सोचता रहता हूँ . अलविदा, अनीसा
- तुम्हारा दिल " SHAHID"
प्यारी दुल्हन अनीसा ( शाहिद की दीवानी )
अनीसा मुझे तुमसे एक शिकायत है वो ये है कि तुम्हें पता है 1/1/99 से मैंने अपना शायराना सफ़र शुरू किया था. तुमने 1/1/2k और न ही 1-1-1 को फोन किया. और अगर फोन किया भी तो New Year Wish करने के लिए . जबकि अब तो तुम्हें अच्छे से पता है कि मेरे लेख ' दैनिक जागरण' जैसे प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाषित हो रहे हैं फिर भी तुमने मुझे एक बार भी मुबारकबाद नहीं दी. जबकि तुम ये भी अच्छे से जानती हो कि तुम्हीं ने मुझे शायर बनाया. अनीसा तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरी शायरी मेरी ग़ज़लों और मेरे लेखों की तारीफ में पूरी दुनिया ( मेरे दोस्त, मेरे Relatives ) कसीदे कढ़ रही है. एक तुम्हीं हो जिसने मेरी शायरी के बारे में , जो कि तुम्हारे लिए , सिर्फ तुम्हारे लिए है , एक कसीदा नहीं गढ़ा . अनीसा मैं फिर लिख रहा हूँ कि मेरी हर एक ग़ज़ल एक पयाम लिए होती है तुम्हारे लिए.
मैं एक बात और लिख रहा हूँ कि अगर आप अगले ख़त में शायर या अनीसा का दीवाना कहकर मुखातिब करें तो मेरी रूह एक खुशी महसूस करेगी. शायद तुम ऐसा करोगी.
इस सब को अन्यथा न लेना , मैंने तो यूँ ही लिख दिया. अनीसा मैं तुम्हें बता दूं कि अब तुम मेरी साँसों से भी ज्यादा जरूरी हो गयी हो. जब साँसों के बिना नहीं जिय जा सकता तो तुम्हारे बिना कैसे जिया जा सकता है ?
अनीसा इस वक़्त मैं यही सोच रहा हूँ - हम दोनों चांदनी रात में तन्हा बैठे हुए हैं . अपने आसपास कोई भी नहीं. है अगर तो सिर्फ अपना प्यार , मेरी साँसें और तुम्हारी साँसें , और आज तुम भी बिलकुल डरी हुयी नहीं हो . मुझसे प्यार करने हमेशा-हमेशा के लिए हमारे पास आ गयी हो . तुम्हारी गोद में मेरा सिर है और मेरे हाथ उन कलाईयों पर हैं जिनमें मेरे नाम की तुम चूड़ियाँ पहने हो.
और तुम्हारे हाथ मेरे उलझे हुयी जुल्फों को सुलझा रहे हैं. और तुम्हारे प्यारे-प्यारे जो होंठ हैं वो बार-बार एक पल के लिए मेरे होठों को चूम रहे हैं. और जब तुम मेरे होंठों को चूम रही होती हो तो तुम्हारे गेसू मेरे गालों पर इस तरह आ रहे हैं मानो तुम्हारे गेसू मेरे होठों का पर्दा हों.
क्या अनीसा तुमने कभी इस तरह के मौसम के बारे में सोचा है ? जरूर सोचा होगा , क्योंकि हर मुहब्बत करने वाले के दिल में इस तरह के ख़यालात आते हैं.
और फिर अनीसा ये मुहब्बत करने का मौसम भी तो है . यानी वसंत का मौसम, मस्ती में झूमने का मौसम .
अनीसा तुम्हें याद होगा कि तुमने मुझसे कहा था कि हाँ मैं खुद ही आपसे कह दिया करूंगी. यहाँ पर अनीसा रूह से निकला मैं वो अन्तरंग लिख रहा हूँ जिसे लिखना ठीक तो नहीं मगर लिखा जाये तो हर्ज नहीं.
शायद अब भी आपको वो गुनगुनी धूप में छत पर दिया हुआ वादा याद नहीं आया . शायद याद आ गया, फिर भी मैं बता दूं ( तुम तो कह नहीं सकती मगर क्यों ? ये तो वादा को तोड़ना हुआ )
मैं उस 'नए दर्द' के बारे में बात कर रहा हूँ जिसे अक्सर तुम सोते वक़्त महसूस करती हो. शायद अब आपको याद आ रही होगी वो '19 Feb. 2k और 7 Apr, 2k कीखुशनसीब रात. मेरे अनुसार सिर्फ दो ही रातें थीं. जिनमें हमने तन्हाईयों में आसिंयाँ बनाया था. मैं जानता हूँ तुम्हारे अनुसार और भी होंगी . अब भी मैं अजीब सा अहसास महसूस कर रहा हूँ. और शायद तुम भी महसूस कर रही हो. है न ! अरे अब तो बोल दो प्यारी अनीसा , शाहिद की जान .
अनीसा अपने प्यार के दामन में कुछ इस तरह बाँध लो कि हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे पास रहूँ.
अनीसा अक्सर तुम मेरे ख्वाबों में आती हो और कुछ इस तरह बाँटें होती हैं--
मैं ( अपने हाथ तुम्हारे गालों पे रखे हुए ) - "अनीसा मुझे इतना प्यार करती हो "
तुम ( अपने हाथ मेरे गालों पे रखे हुए ) - " आप हमेशा यही क्यूँ पूछते हो ?
बस यूँ ही
" आज मैं आपसे जी भर के बातें करूंगी"
" आज मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करूंगा "
( इसी सब में चुपके से , तुम अपने होठों से मेरे होठों को चूम लेती हो ) और फिर से बातों का सिलसिला शुरू होता है.
"क्या अनीसा तुम्हें वो दिन ( 19 Feb. ) याद है जब ,मैंने तुम्हारी मांग को सजाया था.
अरे , मेरी ज़िन्दगी के मालिक शाहिद , मैं कैसे भूल सकती हूँ. अपनी उस मांग को जिसे तुमने अपने लहू से सजाया था और फिर उस लहू के हर क़तरे पर मेरा नाम लिखा था.
"इतना न कहो अनीसा , बस " ( होठों पर हाथ रखते हुए )
" शाहिद मुझे ले चलो , अब तन्हा नहीं जिया जाता. "
और इसी के साथ तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेती हो, और सिसकियाँ भर-भर कर रोने लगती हो .
--- और फिर मैं भी रोने लगता हूँ .
ये, अनीसा, मेरा वो ख्वाब है , जिसे मैं तन्हाईयों में सोचता रहता हूँ . अलविदा, अनीसा
- तुम्हारा दिल " SHAHID"