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Tuesday, July 22, 2014

- हमनवा

26th Mar. 01                                                       - हमनवा

Dear Beloved,
                       Hi
"अनीसा"
अनीसा आज उस खुशनसीब दिन ( जिस दिन का मुहर्रम का चाँद दिखाई दिया था ) को गुजरे पूरा एक साल हो गया  क्योंकि आज शाम को मुहर्रम का चाँद दिखाई देने वाला है. अब से कुछ घंटों बाद , अभी 2:28 pm है . अनीसा कितने हसीं थे वो प्यारे लम्हे. दुनिया की परवाह किए बगैर तुमने मेरे संग दरगाह के जीनों पर सजदा किया था. तुम्हारे इस कारनामे को शायद मेरे कलम से बाहर है जो कि हर एक हसीं लम्हात को अल्फाजों में पिरो देती है . अनीसा ऐसा मेरा यकीं है तुम्हें आज चाँद देखते ही , मेरे संग गुजारे वो लम्हे याद आने लगेंगे और तुम एक गुजरी हुयी दुनिया में फिर से चली जोगी. है न !

अनीसा कल इस मुहब्बत करने वाले ने सारी हदों को पार कर दिया. उस वक़्त तुम्हारा शाहिद मगरिब की नमाज़ पढ़ रहा था. और अनीसा तुम्हारी वो याद आई कि मैं नमाज़ में ही रो दिया. और फिर नमाज़ के बाद जब बारगाहे इलाही में मैंने अपने दोनों हाथ फैलाए तो मैं किस कदर रोया. ओ दीवानी मैं तुम्हें कैसे बताऊँ .

"मेरी रूह में बसी तुम वो रूह हो जो मेरे दिल को धड़का रही है"

अनीसा, मैं तुम्हें कैसे अहसास कराऊँ अपनी मुहब्बत का तुम्हीं बताओ.  अनीसा, मुझे कोई छत पर सोने का शौक तो नहीं है , तुमसे मिलने की लगन ही थी जिसने मुझे खुले आसमां के नीचे रहने को मजबूर किया. नींद आने का तो सवाल ही नहीं था . क्योंकि तुम मेरे करीब जो न थीं. अनीसा कितनी ख़ुशी  में डूब के तुम मेंहदी से खेलती रहीं. जबकि तुम्हारी ख़ुशी तो कुछ और है और जो उस वक़्त तुम्हारे करीब आने को तड़प रहा था. और तुम झूठी खुशियों से अपना दिल बहलाती रहीं. शायद ये ठीक नहीं था लेकिन अब मैं तुम्हें मना तो नहीं कर सकता क्योंकि पिछले ख़त में , मैं तुम्हें बंदिशों से आजाद कर चुका हूँ अब अपनी मालिक तुम खुद हो.

- शाहिद

इस ख़त का बाकी का हिस्सा लैटर कलेक्शन में है.