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Monday, July 7, 2014

इंतज़ार करता रहा.

मेरी ' दुल्हनियां अनीसा '

16/02/01 को जैसे ही तुम्हारे पास आने का डिसाइड  हुआ , अनीसा मैं तनिक भी न सो पाया उस रात. मैं पूरी रात, रात ख़त्म होने का इंतज़ार करता रहा.

पूरी रात करवटें बदलते हुए तुम्हारे साथ बिताने के लम्हों के ख्वाब बुनता रहा.

लेकिन अनीसा मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक़्त न बिता सका.

अनीसा, मैं हर बार तुमसे कहता था कि तुम मुझे वक़्त नहीं देती . इस बार मैं तुम्हें वक़्त न दे सका. इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ.  प्लीज माफ़ कर दीजिये.

शायद अनीसा तुम्हारे होठों को चूमे बिना ही जाना नमुमकिन था. इसीलिए रब ने कुछ ऐसा किया और मैं तुम्हारे पास दोबारा आया. और तुम उस वक़्त तन्हा मिलीं ये भी किस्मत की बात थी और रब का करम था.

जैसे ही मैंने आपको देखा तो मैंने आपके गालों को चूमने का मन बनाया मगर होठों को तो कुछ और ही मंज़ूर था .

शुक्रिया ' अल्लाह तआला '

- शाहिद
19/02/01