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Saturday, July 12, 2014

"प्यार के सफ़र" ( मेरी डायरी )

17/3/1                                                                            - आपका दिल

मेरी ज़िन्दगी -

                           'अनीसा'

मैं तुम्हें सबसे पहले एक बात बता दूँ कि अनीसा प्यार और बदनामी का साथ ऐसा होता है जैसे कि चोली और दामन का साथ होता है. और जब ऐसा ही है तो फिर बदनामी से क्या डरना. मैं सारे लोगों की नज़रों में बदनाम हो चुका हूँ . लेकिन मुझे इसकी कोई फिक्र नहीं . है फिक्र तो सिर्फ तुम्हारी , अपने प्यार की . अनीसा तुमने 18 मई के करीब झाँसी जाने से इनकार कर  दिया, शायद ये सोचकर कि मेरी जिद के आगे तुम्हें झुकना पड़ेगा . जबकि अनीसा ऐसा बिलकुल नहीं है. लेकिन तुमने जो सोचा है वो ठीक ही सोचा है.तुम वहां मत आना 

अनीसा मैं अक्सर पागलों की तरह कहता रहता हूँ कि तुम ऐसा करना , ऐसा नहीं करना , यहाँ जाना , वहां नहीं जाना. मैंने अपने दिल में इसके लिए जद्दोजहद की और मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि मेरा ऐसा करना गलत है अनीसा मैं क्या करूँ? मैं तुम्हें उसी के लिए मना करता हूँ जो मुझे अच्छा नहीं लगता और मुझे अच्छा क्यों नहीं लगता , मैं नहीं जानता अनीसा . अनीसा, मैंने तुम्हें बंदिशों में बाँध रखा है शायद ये ठीक नहीं , और तुम भी सोचती होगी कि आजाद पंछी का खुली वादियों में उड़ने का मजा ही कुछ और होता है. इसलिए अनीसा आज मैं तुम्हें उन सारी बंदिशों से आजाद करता हूँ. जो अब तक तुम उन बंदिशों में जी रही थीं.  लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप प्यार कम करने लगें. आप मुझे बेहद प्यार करें , मैं ऐसी ही उम्मीद करता हूँ . 

लेकिन अनीसा तुमने मुझे जिन बंदिशों में बाँधा है उन बंदिशों में, मैं हमेशा की तरह जीने का वायदा करता हूँ. और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपके द्वारा दी गयी बंदिशें मेरे जिस्म का हिस्सा बन जाएँ . 

Really अनीसा जब हम दोनों 11 मार्च को छत मिले तो मुझे अपने आप पर यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं आपके इतने करीब हूँ  और आप मेरी गोद में लेटी हुयी हैं. 

अनीसा इस बार का मिलन एक आम मिलन नहीं था . अनीसा इस बार पल-पल पर तुम यही कहती रहीं कि शाहिद मुझे ले चलो , मेरा फैसला सुनने के लिए बेकरार रहीं. और मुझे हमेशा -हमेशा को पाने के लिए कहती रहीं. अनीसा मैं रब से यही दुआ करूंगा कि मेरे लिए तुम्हारी ये दीवानगी जिंदा रहे. और आपको आपका शाहिद मिल जाए . 

शायद अनीसा तुमने मुझे उस रात के लिए माफ़ नहीं किया जिस रात मैं तुम्हारा इंतज़ार करता रहा और तुम मेंहदी लगाने में मशगूल रहीं. आपकी आवाज मुझे Torcher करती रही. और मैं तनहा तड़पता रहा. 

शायद अनीसा तुम्हें याद हो "प्यार के सफ़र" ( मेरी डायरी ) में, मैं तुमसे उस तरह से मांग चूका हूँ . शायद दुनिया में किसी ने किसी से न मांगी होगी. याद आया न मैं तुमसे जितनी बार नाराज़ हूँ, तुम मुझसे जितनी बार नाराज़ हो ----------. 

मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि मैं आपकी सहेलियों से न मिल पाया, मुख्यता ज्योति जी से. खैर , मेरा सॉरी बोलना . 

अनीसा मुझे उस वक़्त बहुत ज्यादा प्रॉब्लम होती है जब तुम अपनी वही स्पेशल स्टाइल में अपनी खूबसूरत आँखों पर अपना हाथ रख लेटी हो. और उसे भी चुनरी से ढक लेती हो. सच अनीसा उस वक़्त मुझे बहुत तेज गुस्सा आती है . मैं तुम्हें आदेश नहीं दे रहा हूँ. न ही बंदिश में बाँध रहा हूँ , क्योंकि मैं तुम्हें पहले ही बंदिशों से आजाद क्र चुका हूँ. मेरी तुमसे प्रार्थना है , गुजारिश है , आरजू है कि प्लीज अनीसा ऐसा मत किया करो.मैं ये नहीं सह पता हूँ . जब तुमने 12 मार्च को ऐसा किया तो मैंने दोनों हाथों से दोनों कानों को पकड़ लिया मगर फिर भी तुमने उस जालिम चुनरी को नहीं हटाया. जिसने मेरी प्यारी अनीसा का चेहरा ढक लिया था. अनीसा मैं तो जानता था तुम नहीं सो रही हो , लेकिन अनीसा मेरा दिल तुम्हारी नींद से घबराता है . अनीसा, तुम्हारे करीब बिताया गया मेरा हर एक लम्हा कितना कीमती होता है. तुम तो जानती हो. 

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा कितनी खुशनसीब थी वो चुनरी जो मैंने तुम्हारे चेहरे को उढाई थी. सच अनीसा तुम उस वक़्त मेरी दुल्हन जान पड़ती थी. मुझे ही दूल्हा बना देती तो कितना अच्छा होता. सच अनीसा तुम्हारी सुन्दरता उस वक़्त वो थी, जिसे मैंने उस दिन से पहले कभी न देखा था. और फिर भला ऐसी सुन्दरता को मेरे लफ्ज़ क्या बाँध पायेंगे. 

अनीसा इस बार प्यार करने का तरीका सबसे जुदा था. मैं कैसे बताऊँ. वो मेरा निहारना , और फिर तुम्हारी आँखों का देखने का करीना ही कुछ और था. मेरी मुस्कराहट और तुम्हारी तबस्सुम , क्या कहूँ अनीसा. काश ये प्यार का मौसम हमेशा के लिए आ जाए . और हम ताउम्र प्यार करें बस इसी तरहा.

अनीसा अब उन दो रातों में ( 19 फरवरी 2000, 7 अप्रैल 2000 ) एक रात और जुड़ गयी जो कि 13 मार्च 2001 है जिसे हम दोनों हमेशा याद रखेंगे . इनमें सबसे प्यारी और खूबसूरत रात 13 मार्च 01 है. 

और फिर मजाकिया लहजे में ये और वो ----? आज की रात की तुम्हारी हर अदा निराली थी. अनीसा तुम पर कुर्बान जाए मेरी जान. आपकी हिम्मत , आपकी चाहत, आपका प्यार बस मेरे लिए रहे. अनीसा ऐसा ही होगा न , बोलो न . तुम्हें उस रात की मेरी हर अदा की कसम . अपने लवों को हिला दो. यूँ ही बोल दो. मैं न सही तो तन्हाई के सामने ही सही. बोलो न "हाँ" .

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

वाह क्या अंदाज है . मेरी विदाई करने का तुम्हारा अंदाज सबसे जुदा है. कितने प्यार से हम दोनों एक दूसरे का झूठा खाते हैं. क्या कहूं ? और फिर जाते-जाते वक़्त मेरे गालों पर तुम्हारे होठों का वो हसीं बोसा . बस यूँ ही सब कुछ कायम रहे. 

अनीसा प्यार करने के करीने में तुमने एक और करीना का इजाफा किया है वो ये कि तुम प्यार ही प्यार में अपने होठों से मेरे सीने को चूमती हो. जिसमें तुम्हारा दिल समाया हुआ है. 

19 फरवरी 2000 की वो खुशनसीब रात थी जिसमें मैंने अपने लहू से तुम्हारी मांग को सजाया था. और ये 13 मार्च 2001 की हसीं रात थी जिस रात तुमने अपने हाथों में मेरे आंसुओं को लेकर अपनी मांग में सजाया और अपने लवों से मेरे आंसुओं को पी लिया. 

01.01.01 को आप मेरे लिए कितना परेशान हुयीं. आपके ग़मों को सहने की हद उस वक़्त टूट गयी जब आप ज्योति के सामने रो पड़ीं. और उसने मुझसे बात कराने का वादा किया. फिर भी आप मेरी आवाज़ न सुन सकीं. मैं अपनी आवाज़ के लिए कहूँगा यही कि ये बस आपके लिए निकले. कोई और इस आवाज़ को न सुनने पाए. 

अनीसा तुमने एक जगह लिखा है - 
"आपको खुश रखना मेरा फर्ज है" अनीसा ऐसी बातें मुझे जीने के लिए मजबूर करती हैं. और मैं तुमसे मिलने के लिए तड़प उठता हूँ. प्लीज अनीसा मेरी ज़िन्दगी में आ जाओ. 

मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा  आपको बहुत -बहुत शुक्रिया जो आपको भी "नए दर्द" का अहसास है.जिसे आप अक्सर महसूस करती हैं. अनीसा ये जानकार मुझे बहुत ख़ुशी हुयी कि आपको भी "नए दर्द"' का दर्द होता है. और उस वक़्त जब ये दर्द होता है आप मुझे बुलाने की दुआएं मांगने लगती हैं. 

अनीसा मुझे ख़ुशी है कि आपको मेरी ग़ज़लें और नज्में पसंद आने लगीं. लेकिन मुझे एक शिकायत रही कि आपने मुझसे कहा नहीं कि शाहिद कोई एक ग़ज़ल तो सुना दो. मैं अपने लवों से तुम्हारे सामने सुनाना चाहता था. खैर आने वाले कल में मेरी ये शिकायत आप जरूर दूर करेंगी.  उम्मीद करता हूँ. 


मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा इतना बड़ा ख़त लिखा करो कि मैं पढूं और ---- बस पढता ही रहूँ. 

अनीसा जब मैं तुम्हारे पास से आया तो मेरा मन भारी-भारी था. सुबह घर पर रहने का मन नहीं कर रहा था. इसलिए मैं तन्हाई तलाश करने घर से दूर लकड़ियों के ढेरों के आसपास गया . जहाँ मैं लेटा रहा और तुम्हारे संग बिताया हर लम्हे का अक्स अपनी आँखों में उतारता रहा. इसी बीच  आपका फोन आया और पापा ने आपसे बात की . मुझे शीरीं ने बताया . मैं परेशान हो गया और रोने  लगा. फिर मम्मी ने पूरी बात बताई , मैं फिर से रोने लगा. मम्मी ने बताया पापा कह रहे थे- शाहिद अभी तक नहीं माने.  मेरे बारे में मम्मी से काफी कुछ कहते रहे , अकेले में. मुझसे कुछ नहीं कहा. 

अनीसा तुम फिक्र मत करना . पापा मुझसे ठीक से बात कर रहे हैं. कोई प्रॉब्लम नहीं है. सब कुछ नार्मल है. 

मम्मी जरूर मुझसे हद से ज्यादा गुस्सा हुयीं.बुरा भला कहा , बददुआएं दीं . मर जाने तक के लिए कहा. कहने लगीं - मेरी नज़रों के सामने से दूर चले जाओ . तुम मेरे लड़के नहीं हो. तुम जैसा बीटा न होता तो अच्छा होता. 

अनीसा मेरी जगह उस वक़्त कोई और होता तो शायद मर जाता . या घर से भाग जाता. मम्मी ने इतना बुरा भला कहा. 

लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. बस तुम्हारे प्यार को दिल में बसाये रहा. तुम्हें हासिल करने की रब से दुआएं मांगता रहा. 

मैं जब नहाने गया तो उसी दरमियाँ फिर रोने लगा. बस यूँ ही रोता और बस रोता ही रहा. अब काफी कुछ ठीक है. वक़्त वो मरहम है जो   नासूर जैसे जख्मों तक को भर देता है. 

अनीसा इल्हाक ने मुझे तुरंत सुबह ख़त दे दिया था. अनीसा तुमने बिलकुल ठीक लिखा है कि जब भी हम दोनों को थोड़ी सी ख़ुशी मिली उससे ज्यादा रोना पड़ा. अनीसा तुम इतना ज्यादा परेशां थीं और फिर भी तुमने मुझे समझाया और मुझे ख़त में फिक्र न करने के लिए कहा. अनीसा प्यार में ऐसा नहीं होता है . जो भी ग़म आएगा हम दोनों हंस कर उसे साथ-साथ सहेंगे क्योंकि ये प्यार की रस्म है, कोई दुनिया की रस्म नहीं . मम्मी ने चौथी के लिए मुझे मना कर दिया है , वैसे कल रशीद भाईजान का फोन आया था . सॉरी अनीसा मैं मजबूरियों के कारण नहीं आ पा रहा हूँ. 


मेरे खतों को समझने की कोशिश करो ! 

अनीसा तुम खुश रहना . मेरी फिक्र मत करना. मैं जैसा भी हूँ. ठीक हूँ. 

अनीसा इस बार फिर तुमने अपना सिर मेरे पैरों में रख दिया , ऐसा मत किया करो अनीसा. क्योंकि हम दोनों बराबर हैं. कोई एक दुसरे से छोटा बड़ा नहीं है . 

मेरी दुल्हनियां सारे गिले, सारे  शिकवे भूलकर मेरे प्यार से प्यार करो. और मन से अपने एग्जाम देना . अनीसा एग्जाम ख़त्म होने तक चाहो तो मुझे फोन मत करना. अपने एग्जाम अच्छी तरह देना. मेरा तोहफा तुम्हारी फर्स्ट डिवीजन होगी. उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे इस तोहफे को देने में कोई ढिलाई नहीं करोगी. अपनी पूरी कोशिश करोगी मुझे ये तोहफा देने में . मेरी गुड विसिज और गुड लक एंड बेस्ट ऑफ़ लक तुम्हारे साथ में है. करोगी न ऐसा. प्लीज़  ....

अनीसा मैंने 14/1/1 को ज्योति को फोन किया था. मगर बात न हो पायी. अनीसा कुछ ऐसा करो कि उससे मेरी बात हो जाया करे और मैं अपना कोई जरूरी पयाम तुम तक पहुंचा सकूं. इसके लिए मैं लिख रहा हूँ कि मैं सुबह 11-12 या शाम 5-7 के बीच में ज्योति को फोन किया करूंगा और मैं जैसे ही रिसीवर उठाऊं तो मैं दो बार हेलो-हेलो कहूँगा जिसके जवाब में ज्योति भी हेलो -हेलो दो बार कहे. और फिर कहे मैं ज्योति जिससे मेरी उससे बात हो जाया करेगी. तुम कल ही उससे ये कह देना प्लीज़ ....

एग्जाम ख़त्म होने के बाद तुम मुझे फोन कर लिया करो. सुबह पापा ने पढ़ाना बंद कर दिया है. जिससे वो घर पर ही रहते हैं. तुम 11:15 के बाद 1:15 तक फोन कर लिया करो या 2:15 से शाम 4:30 तक कर लिया करो. 

मैंने कंप्यूटर क्लास लेना बंद कर दिया है. इसलिए घर पर ही रहता हूँ. तुम फोन जरूर करना हमें और तुम्हें डरना नहीं है, दुनिया का सामना करना है . तुमने मुझे अपने ख़त में ठीक मना कर दिया - जोश में आके शाहिद कुछ न करना. यकीन करो अनीसा मैं जोश में एक अजीब सी ----- करने वाला था. अब सब कुछ नार्मल है तुम मुझे जरूर फोन करना एग्जाम के बाद . पापा किसी से कुछ नहीं कहेंगे . मैं अच्छी तरह जानता हूँ. क्योंकि वो भी किसी जमाने में प्रेमी थे. मैं तुम्हें अपना प्रोग्राम लिख रहा हूँ जब मैं कोंच में नहीं हूँगा. 17 मई 01 से 19 मई 01 तक झाँसी में मेरा एग्जाम है . आयशा बाजी के पास जाऊंगा. 21 मई 01 - 22 मई 01 ( अभी क्लियर नहीं ). ग्वालियर में एग्जाम है . 14 मई 01- 16 मई 01 लखनऊ में एग्जाम है. 17 जून 01 से 19 जून 01 तक अलीगढ़ में एग्जाम है. मेरी कामयाबी के लिए दुआ करना. 

"कोई गलत कदम मत उठाना , इसे मत भूलना "  - शाहिद 
यूँ गेसुओं के साए में अपने चेहरे को न छिपाया कीजिये 
करीब न आओ मगर दूर से ही मुस्कुराया कीजिये
- शाहिद 

अभी बीच में जल्दी फोन कर देना "उसके लिए" कुछ हुआ तो नहीं ? अनीसा, मेरी बीबी, मेरी ज़िन्दगी, मेरी जान खुश रहना . कोई फिक्र न करना . मेरी नाराजगी के बारे में कुछ न सोचना. मैं तुमसे खुश हूँ. और शायद तुम भी मुझसे खुश होगी. और अगर नाराज़ हो तो उस नाराजगी के लिए एक बार फिर माफ़ी मांग रहा हूँ. घुटने टेक कर माफ़ कर दीजिये. 

मुझे याद करती रहना , फोन करती रहना. दुआओं में रब से मुझे मांगती रहना . हौसला रखना दिल में. हम मिलेंगे जरूर मिलेंगे. रब एक न एक दिन जरूर मिलाएगा. आंसुओं से दूर रहना, यानी कतई नहीं रोना. मैं आऊंगा . चाहो तो झाँसी चली जाना. बस रोना नहीं, खुश रहना . 

तुम्हारी सलामती - आपका नादान शाहिद 
17 मार्च 01 

तुम अक्सर सोचती हो- फांसी , जहर ----- ये सब बुझदिल करते हैं. जो हमारे प्यार का दुश्मन है वो हम दोनों का दुश्मन है . हम दोनों को तो दुनिया से लड़ना है. 
- शाहिद