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Wednesday, August 6, 2014

मेरी कलम झूठ लिख रही है

अनीसा, इस वक़्त सुबह के 4:45 बज रहे हैं. आज मेरा Exam है , तो जल्दी जागा हूँ. रात में जल्दी 10:30 बजे सो गया था.

अभी-अभी मैंने सपना देखा है कि तुम आज ही अपनी ससुराल से आई हो . जो चौथी की रस्म होती है न अभी-अभी वो पूरी हुयी है. लेकिन अनीसा ये शादी तुम्हारी मुझसे नहीं किसी और से हुयी है. वो कौन है, मैं देखा नहीं, मैं जानता नहीं. 

अनीसा तुम एक कमरे में बैठी हुयी हो. सर पे तुम्हारे चुन्नी है, पैरों में सुहाग की निशानी है. हाथ में यानी तुम्हारी कलाईयों में वो चूड़ियाँ हैं जिन्हें हर औरत अपने शौहर की सलामती के लिए पहनती है. 

अनीसा तुम इतनी खुश हो कि मैं बता नहीं सकता. क्योंकि अगर मैं तुम्हारी ख़ुशी लिखूंगा तो आज मेरी आँखें रो पड़ेंगी जो कि मैं नहीं चाहता क्योंकि 3 घंटे बाद मेरा Exam है. 
जबकि अनीसा तुम जानती हो कि मैं तुम्हारी ख़ुशी चाहता हूँ मगर आज तुम्हारी मांग में किसी और के नाम का सिन्दूर देखकर नफरत सी हो रही है. मेरा दिल मुझे समझा रहा है कि ये उस लड़की यानी अनीसा की ज़िन्दगी की एक बहुत बड़ी गलती है जो तूने मुझसे शादी नहीं की .

मेरा दिल मुझसे कह रहा है - अरे शाहिद तुम तो अब इंजीनियर हो और भी दोस्त मिलेंगे ज़िन्दगी के सफ़र में. 

दरअसल हुआ यूँ अनीसा जब तुम अपने ससुराल में गुजारे दिन और रात का हाल आयशा बाजी को सुं रही थी तो मैं तुम्हारे करीब गया और मैंने अपना समझकर तुम्हारे सर पर हाथ रखा , तुमने कुछ पूछना चाहा मगर तुमने बताना बेहतर न समझा और मेरे पास से चली गयी. 

और उस पूरे दिन मेरे पास नहीं आई यानी पूरे दिन कटे-कटे सी रही. 

अनीसा ये तो सपना था जिसे मैंने सुना दिया. अनीसा तुम मुझे बेइंतिहा मुहब्बत करती हो तुम ऐसा नहीं कर सकती. 

आज लग रहा है की मेरी कलम झूठ लिख रही है . एक सच सहने में डर रही है क्योंकि सच्चाई कड़वी होती है न !

- शाहिद
31.01.02
( मेरठ)